Friday, 30 March 2012

देखो! कितनी गहरी है हरियाणा में असंतुलन की खाई

चर्चा में किताब -
हरियाणा का समाज और सत्ता : निरंतरता और बदलाव

असंतुलित विकास भारत के सभी प्रदेशों में एक परिघटना का रूप ले चुका है। 

उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में इसे आसानी से देखा जा सकता है। वहां एक ओर नोएडा, लखनऊ के चमचमाते पार्क या मुंबई, पुणे की पांच सितारा जिंदगी है तो दूसरी ओर बनारस, मऊ जैसे शहरों में भुखमरी के शिकार बुनकर या विदर्भ में आत्महत्या करते किसान। 

हरियाणा  भी इन्हीं अंतर्विरोधों का प्रदेश है। यहां भी कहीं विकास के चमचमाते बुर्ज हैं तो कहीं उपेक्षा और असंतुलन की गहरी खाइयां। समाजिक मसलों में भी ये अंतर्विरोध यों ही नजर आ जाते हैं। फिर भी आंकड़ों के तिलिस्म से हरियाणा की छवि कुछ यों गढ़ी गई है कि वास्तविकता से रूबरू होना असंभव सा लगता है। कमोबेश हम हो भी नहीं सकते अगर हमारा सामना राजकुमार भारद्वाज जैसे पत्रकारों से न हो।  

हरियाणा में भ्रूण हत्या पर बहुत शब्द खर्च किए गए, लेकिन लैंड बैंकिंग, अपराध, कुपोषण और जातीय संघर्ष भी इस प्रदेश की समस्या हैं, इस पर हमारा ध्यान खींचने का प्रयास राजकुमार भारद्वाज ने अपनी किताब हरियाणा का समाज और सत्ता निरंतरता और बदलाव के जरिए किया है। राजकुमार भारद्वाज जनपक्षधर पत्रकार हैं और हरियाणा की समस्याओं पर पिछले २० वर्षों से लिख रहे हैं। 

मौजूदा किताब उनके ऐेसे ही लेखों का संग्रह है। इन लेखों में अम्बाला के स्कूल वैन हादसे, गुणगांव के न्यू इयर हादसे और मिर्चपुर प्रकरण जैसे मुद्दों पर त्वरित टिप्पणियां भी हैं और सेज, खाफ और नौकरशाही की समस्याओं पर विचारपरक आलेख भी। सरकारी आंकड़ों के मायाजाल के तोड़ते आम आदमी के आंकड़े भी हैं। 

मसलन दूध-दही के खाणे के लिए प्रसिद्ध हरियाणा में ६९.७ महिलाएं एनिमिया शिकार हैं और ३८ प्रतिशत बच्चे कुपोषण का। विकास का मुखौटों के पीछे जितने विद्रूप छिपे हैं, राजकुमारजी ने उन्हें सटीक तरीके से उघाड़ा है। लेकिन इस पत्रकरिता की जो समस्या है वही राजकुमारजी की भी सीमा है। अंतत: वह भी विकल्पहीन ही रह जाते हैं।

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