प्रेम, विवाह, विवाहेतर रिश्ता और हत्या। हिंदुस्तान की तारीख में ऐसे वाकये चुनिंदा ही हैं, जब प्रेम और विवाहेतर संबंधों में किए गए किसी मर्डर ने सत्ता के गलियारों और सेना को हिला दिया हो।
पारसियों ने एक हत्यारे को बचाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया हो। सिंधी अन्याय के विरोध में सड़क पर आ गए हों। हत्या जैसा जुर्म करने के बाद भी नौसेना अपने होनहार अधिकारी के पक्ष में डंट कर खड़ी हो गई हो। वकीलों की दलीलें मीडिया की सुर्खियां बन गई हों और मीडिया की दलीलों से जूरी ने फैसले दिए हों। फैसले के बाद उस केस पर फिल्में बनी हों, नॉवेल लिखे गए हों, प्ले किए गए हों।। आखिर क्या था ये नानावती केस? प्यार और धोखे की ये कहानी आज भी क्यों याद की जाती है?
नानावती की दिलेरी की तारीफ अंग्रेज भी करते
27 अप्रैल, 1959 का दिन था। नौसेना के कमांडर कवास मानेकशॉ नानावती मुंबई के कोलाबा के कफ परेड के
अपने मकान से निकले थे। उनकी जल्दबाजी ऐसी थी, जैसे किसी जरूरी काम से निकले हों। कार में नानावती के साथ उनकी अंग्रेजी मूल की पत्नी सिल्विया, जिनकी उम्र महज 30 साल थी और बच्चे थे।
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| केएम नानावती और उनकी पत्नी सिल्विया. |
नानावती नेवी के होनहार अधिकारियों में गिने जाते। वे ब्रिटेन के डॉर्टमाउथ स्थित रॉयल नेवी कॉलेज के छात्र और आईएनएस मैसूर के सेकंड इन कमांड थे। खूबसूरत और गठीले डीलडौल के नानावती दूसरे विश्वयुद्घ के दरमियान कई मोर्चों पर लड़ चुके थे। ब्रिटिश हुक्मरानों ने उन्हें वीरता पुरस्कारों से भी नवाजा था।
वे नौसेना के उन अधिकारियों में से एक थे, जिनकी भारत के अंतिम ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड लुइस माउंटबेटन ने विशेष रूप से प्रशंसा की थी, तब जबकि अंग्रेज भारत छोड़कर जा रहे थे।
महज 37 साल के नानावती न केवल अधिकारी के रूप में अपने कर्तव्यों का विशेष ध्यान रखते, बल्कि एक आम नागरिक के रूप में अपने आदर्शों को लेकर वे सचेत थे। लेकिन ऐसा कुछ हुआ कि उन्हीं के हाथों मर्डर हो गया। एक ऐसा मर्डर जो मीडिया की सुर्खियां बना।
सिल्विया की सच्चाई ने नानावती को झकझोर दिया
सिल्विया से नानावती की भेंट 1949 में लंदन में हुई थी। 27 अप्रैल, 1959 की दोपहर उसने नानावती को एक ऐसी सच्चाई बताई, जिसने उनकी दुनिया में तूफान ला दिया। सिल्विया ने अपने पति नानावती को बताया कि वह किसी और से प्यार करती है। और ये और कोई और नहीं था, बल्कि उन्हीं का पारिवारिक मित्र प्रेम आहूजा था।
सिल्विया की उस आत्मस्वीकृति ने नानावती के मन पर क्या असर डाला, इसकी भनक भी उसे नहीं लग पाई। पति-पत्नी और बच्चे उस दोपहर अपनी कार से मुंबई की सड़कों पर दौड़ रहे थे। नानावती ने बीवी और बच्चों को मेट्रो सिनेमा पर छोड़ दिया। उन्हें उस दिन का मैटिनी शो देखना था, ये पहले से तय था।
उन्हें छोड़ने के बाद नानावती बांबे हॉर्बर की ओर गए, उनकी बोट उन दिनों वहीं खड़ी थी। उन्होंने कैप्टन से कहा कि वे अहमदनगर जा रहे हैं, उन्हें रिवॉल्वर और छह गोलियों की जरूरत है। उन्होंने बंदूक एक पैकेट में रखी और अपनी कार से यूनिवर्सल मोटर्स की ओर बढ़ गए। ये पेडर रोड पर गाड़ियों का शोरूम था, जिसका मालिक प्रेम आहूजा था।
उस समय कार में नौसेना का एक अधिकारी सवार नहीं था, बल्कि एक ऐसा पति था, जिसकी पत्नी ने उसे धोखा दिया था और उसी के दोस्त की बाहों में सो गई थी। नानावती के पास रिवॉल्वर और छह गोलियां थी।
दूसरों की बीवियों पर फरेब डालना आहूजा का शौक था
आहूजा उस दोपहर अपने शोरूम पर नहीं था। वह लंच करने घर गया था। शोरूम पर तफ्तीश के बाद नानावती अपनी कार में लौट आए। कार मालाबार हिल की ओर मुड़ गई थी, मंजिल थी नेपियर सीरोड की सितलवाड़ लेन का एक फ्लैट। इसी फ्लैट में प्रेम आहूजा रहता था।
लहराते बाल, घनी भौहें और पहनावे की खास समझ, आहूजा एक बारगी किसी फिल्मी हीरो से कम नहीं लगता। 34 साल का वो युवक शानदार डांसर था। फरेब उसका हुनर था, सैन्य अधिकारियों की बीवियों के साथ इश्क खास शौक। मुंबई में उन दिनों मशहूर ब्रिटिश युगीन क्लबों और सेना की पार्टियों में वह आमतौर पर मौजूद रहता। उसके झांसे में कई महिलाएं आ चुकी थी, विशेषकर वे जो अकेली होतीं।
उस समय के मुंबई के मशहूर टेब्लॉयड ब्लिट्ज ने आहूजा के बारे मे लिखा था, ''आहूजा एक ऐसा लंपट था, जिसे दूसरों के चारागाह में मुंह डालना अच्छा लगता।'' आहूजा का परिवार करांची से मुंबई आया था। वो अपनी बहन मेमी की साथ रहता था।
नानावती की कार आहूजा के फ्लैट के बाहर थी और वह शॉवर के नीचे। मर्डर के इस सनसनीखेज प्लॉट पर बाद में फिल्में भी बनीं।
तीन गोलियां चलीं और आहूजा के बदन पर तौलिया था
आहूजा नहाकर बाथरूम से बाहर आया था। उसकी नौकरानी नानावती को तीसरे फ्लोर पर बने उस अपार्टमेंट तक लाई। आहूजा के अपार्टमेंट में उन्होंने खामोशी से कदम रखा। कम से कम चेहरा देखकर ये कहना मुश्किल था, मन के भीतर एक तूफान उठा हुआ है।
नानावती सीधे आहूजा के बेडरूम में गए और दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। चंद मिनटों तक सन्नाटा रहा और उसके बाद तीन गोलियों की आवाज सुनाई दी। आहूजा लहूलुहान जमीन पर गिरा तो उसके बदन पर बस एक तौलिया था। नानावती अपार्टमेंट से बाहर निकल आए। वहां अब केवल मेमी की चीखें थीं और आहूजा की लाश।
नानावती अपने कार से मालाबार हिल की ओर बढ़ गए। राजभवन के गेट पर रुककर उन्होंने एक कांस्टेबल से नजदीकी पुलिस स्टेशन का पता पूछा। वे उस स्टेशन में गए और आत्मसमर्पण कर दिया। गामदेवी पुलिस स्टेशन के सभी पुलिस कर्मचारी कुछ क्षणों के लिए सकते में आ गए।
नानावती का मुकदमा बना देश का पहला मीडिया ट्रायल
नौसेना का आला अधिकारी, खूबसूरत बीवी, अवैध रिश्ते और मुंबई की चकाचौंध के चर्चित चेहरे प्रेम आहूजा की हत्या, ये एक ऐसा मामला था, जिससे न शहर का आम-ओ-खास दहल गया, बल्कि न्याय प्रणाली भी हिल उठी।
नानावती पर चले मुकदमा की दुनिया भर में चर्चा हुई । मामले में शुरुआती किरदार तीन ही थे, लेकिन बाद में राम जेठमलानी और विजय लक्ष्मी पंडित जैसी शख्सियतों का नाम केस से जुड़ा। उस जमाने के मशहूर पत्रकार और ब्लिट्ज के संपादक वीके करांजिया ने भी केस में अहम भूमिका निभाई।
ब्लिट्ज ने उस दौर में जैसी रिपोर्टिंग की, उसे मुल्क का पहला मीडिया ट्रायल माना गया। सेशन कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक तकरीबन ढाई साल तक केस चला और करांजिया ने नानावती को बरी करने के लिए अपने अखबार का भरपूर इस्तेमाल किया।
करांजिया पारसी थे और नानावती भी। इसलिए करांजिया की सहानुभूति स्वाभविक तौर नानावती की ओर रही, जबकि जेठमलानी ने प्रेम आहूजा की ओर से मुकदमा लड़ा। दोनों ही सिंधी थे। ये एक ऐसा केस था, जिसकी चर्चा बड़ापाव की दुकानों पर भी हुई और पांच सितारा पार्टियों में भी। ये केस पारसी और सिंधी समुदाय के बीच मनमुटाव का कारण भी बना।
आहूजा मर्डर केस के बाद जूरी सिस्टम ही खत्म हो गया
पारसी समाज ने नानावती के केस को मध्य वर्ग के नैतिक मूल्यों से जोड़ दिया और आहूजा के क्रियाकलापों को चरित्रहीनता करार दिया। उन्होंने राष्ट्रपति और राज्यपाल से नानावती को माफ करने की मांग की।
1961 की सर्दियों में सुप्रीम कोर्ट ने नानावती को उम्रकैद की सजा सुनाई, हालांकि कुछ दिनों बाद सरकार ने उन्हें माफी दे दी और वे जेल से बाहर आ गए। नानावती पर धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था, हालांकि जूरी ने उन्हें 302 के तहज दोषी नहीं माना। जूरी ने अपने फैसले में उन्हें 8-1 के मत से निर्दोष करार दिया।
बांबे हाईकोर्ट ने उस फैसले को रद्द कर दिया और निचली अदालत में दोबारा ट्रायल चला। प्रेम आहूजा मर्डर केस भारत में जूरी ट्रायल का अंतिम केस बना। सरकार ने इसके बाद जूरी ट्रायल का सिस्टम ही खत्म कर दिया। कई रिपोर्टों में ये भी कहा गया कि नानावती के पक्ष में दिया गया जूरी की फैसला मीडिया की दलीलों से प्रभावित था।
उस समय आठ गुना कीमत पर बिकीं ब्लिट्ज की कॉपिया
करांजिया ने उस समय नानावती का खुलकर समर्थन किया। नानावती केस की रिपोर्टिंग का नतीजा ये था कि ब्लिट्ज की कॉपिया उस समय आठ गुना कीमत पर बिकीं। इस केस की लोकप्रियता ऐसी थी कि 'आहूजा तौलिया' और 'नानावती रिवॉल्वर' जैसे खिलौने भी बाजार में बिके।
पारसियों ने नानावती के समर्थन में मुंबई में सभाएं की, जिनमें कॉसाजी जहांगीर हॉल में की गई सभा सबसे बड़ी मानी जाती है। उस सभा में तकरीबन 8 हजार लोग शामिल हुए। नौसेना और पारसी पंचायत ने भी नानावती का समर्थन किया।
नानावती की रिहाई का किस्सा भी रोचक रहा। वे दरअसल वीके कृष्ण मेनन के रक्षा सहायक रह चुके थे। कृष्ण मेनन उस समय के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के करीबी थे। जब नानावती का केस चल रहा था, नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित महाराष्ट्र की राज्यपाल थीं।
माना जाता है कि एक ईमानदार और जांबाज अधिकारी की छवि, अपने पक्ष में बने माहौल और नेहरू के करीबियों के करीबी होने का नानावती को लाभ मिला और वे रिहा हो गए।
नानावती केस पर फिल्म भी बनी, नॉवेल भी लिखा गया
केएम नानावती का केस बॉलीवुड फिल्मों और उपन्यासों का विषय भी बना। 1963 में आरके नय्यर ने सुनील दत्त को लेकर 'ये रास्ते हैं प्यार के' बनाई। ये संस्पेंस थ्रिलर थी। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरी। फिल्म में डिसक्लेमर दिया गया था कि इसके सभी पात्र और कहानियां काल्पनिक हैं।
फिल्म की नायिका लीला नायडू ने 2010 में अपनी किताब में संकेत दिया कि 'ये रास्ते हैं प्यार के' का स्क्रीनप्ले नानावती केस से पहले ही तैयार हो गया था। गुलजार ने 1973 में विनोद खन्ना को लेकर 'अचानक' बनाई। ये फिल्म नानावती केस पर ही आधारित थी और बॉक्स ऑफिस पर सफल रही। इंदिरा सिन्हा ने नानावती केस को ही आधार बनाकर एक किताब लिखी -'दी डेथ ऑफ मिस्टर लव'।
सलमान रुश्दी की किताब मिडनाइट चिल्ड्रन के एक चेप्टर 'कमांडर साबरमती बैटन' को नानावती केस से प्रेरित माना गया।


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