अवनीश पाठक
डेढ़ वर्ष पूर्व अयोध्या के ऐतिहासिक फैसले के मद्देनजर मायावती सरकार ने उत्तर प्रदेश में जबरदस्त तैयारियां की थी। उन दिनों मैं बनारस में था। उन तैयारियां से उकता कर मैंने यह आलेख लिखा । उस दौर में इसे कई ब्लॉग्स पर जगह मिली। आज इसे अपने ब्लॉग पर जगह दे रहा हूं। इस उम्मीद के साथ कि यहां भी बातों का सिलसिला शुरू हो।
राजनाथ की उजड़ी दुकान ने उसकी चटख मुस्कुराहट को बदरंग कर दिया है। अयोध्या मामले की सुनवाई की पूर्वसंध्या पर शांति स्थापना को निकली पुलिस ने लंका (वाराणसी) स्थित उसकी दुकान उजाड़ दी। उसका चेहरा देख चंद दिनों पहले देखी फिल्म पीपली लाइव का उदास नत्था याद आ गया। महानगर की ऊंची इमारतों और शोर के बीच बैठा नियति के बारे में सोचता हुआ। लेकिन राजनाथ का अफसोस यह है कि न वह नेहरू के दौर का शंभु महतो है और न मनमोहन के दौर का नत्था। वह फुटपाथ पर चाय की दुकान लगाने वाला एक मामूली दुकानदार है। भारत का ऐसा आम आदमी, जो विकास के हर नमूने की कीमत अपनी रोजी लुटा कर चुकाता है। या कहा जाय जिसकी रोजी लूटने के बाद ही विकास की नींव में ईंट पड़ती है। सुंदरीकरण की कवायदों की भेंट भी वही चढ़ता हैए सुरक्षा इंतजामों का सबसे तगड़ा रोड़ भी वही होता है। यही वजह होती है कि शहर की हर होनी के बाद पहला चूल्हा उसी के घर का बुझता है। लेकिन उसकी कहानी न 60 साल पहले कही गयी, न आज कही जा रही है।
फिलवक्त राजनाथ और उसके जैसे 100 से अधिक दुकानदारों की आजीविका आयोध्या मामले के फैसले के बाद होने वाले दंगों के मद्देनजर छीन ली गयी है। मायावती सरकारए, केंद्र सरकार और ब्यूरोक्रेसी को ऐसा लग रहा है कि बाबरी मस्जिद की मिल्कियत के फैसले के बाद देश में विशेषकर उत्तर प्रदेश में दंगे भड़क सकते हैं। इसके कारण उत्तर प्रदेश के 44 जिलों को संवेदनशील घोषित कर दिया गया है। प्रदेश के अधिकाश हिस्सों को पुलिस, पीएसी और अद्र्धसैनिक बलों से पाट दिया गया है। बड़े शहरों और जिला मुख्यालयों को छोडि़ए पुलिस के रूटमार्च तहसीलों और कस्बों तक हुए हैं। 'दंगो से हम सुरक्षित हैं'- यह बोध सरकार ने गांवों के स्तर तक पहुंचा दिया है। अखबारों में इन खबरों की कवरेज यों है मानो युद्ध की तैयारियां चल रही हैं। राजनाथ जैसे दुकानदार इस कवायद में ऐसे हल्के निशाने हैं, जिन्हें साध कर जनता को आसानी से डराया जा सकता है। इसलिए सरकार ने पहले इन्हें ही हटाया है। बाद के कदमों में प्रदेश में हर तरह के प्रदर्शनों, रैलियों और धरनों पर रोक लगा दी गयी है। प्रदेश में ऐसे हालात निर्मित कर दिये गये हैं मानो आपातकाल लगा हो।
अयोध्या (बाबरी विध्वंस) ने हमें मुंबई विस्फोट जैसे गहरे घाव दिये हैं। आंतकी हमलों और दहशत का अंतहीन सिलसिला अब भी जारी है। इसकी आड़ में आर्थिक नीतियों की कसी गयी चूलों में फंसा आम आदमी लगातार कराह रहा है। लेकिन पिछले 15 दिनों में मायावती और उनकी पुलिस ने एहतियातन जैसी तैयारियां की हैं, उन्होंने खौफ की नयी-नयी कहानियां गढ़ी हैं। लोग किसी आसन्न खतरे के कारण डरे हुए हैं। इन तैयारियों की कवायद में ही केंद्र सरकार ने भी कड़ी जोड़ दी है। प्रधानमंत्री ने देश के नाम अपील की है, अयोध्या के फैसले के बाद सभी लोगों को धैर्य और शांति कायम रखना जरूरी होगा। सभी लोगों में धैर्य और शांति बनी रहे, इसलिए ही देश भर में हाई एलर्ट जारी कर दिया गया है। 10 मिनट की नोटिस पर पहुंच जाने के लिए सुरक्षाबल तैयार किये गये हैं। अब हमें सोचना होगा कि क्या खतरा वाकई इतना बड़ा हैए जैसी की तैयारियां की जा रही हैं या मायावती सरकार अथवा केंद्र सरकार भय दिखाकर किन्हीं और उद्देश्यों को पूरा करना चाह रही है।
यह पूरी तैयारी इस पूर्वधारणा पर आधारित है कि आम जनता सहिष्णु नहीं है और अयोध्या मामले में आने वाला फैसला जिस भी पक्ष के विरोध में जाएगा, वह विरोध में दंगे भड़का सकता है। हालांकि यह पूर्वधारणा भी जनता के बारे में गलत समझ का ही द्योतक है। यह वास्तविकता है कि भारतीय समाज में धर्म एक प्रतिनिधि चेतना है। लेकिन मौजूदा अर्थ प्रणाली ने इस मुल्क में संपन्नता और विपन्नता के कई स्तर भी पैदा किये हैं। उन स्तरों की भौतिक स्थितियां ऐसी नहीं कि किसी स्वत:स्फूर्त दंगे का हिस्सा बनें या दंगे को नेतृत्व दें। यदि भारत में दंगों का इतिहास देखें तो आम आदमी दंगों के शिकार के रूप में ही दिखेगा। वह कभी मुसलमान होगाए कभी सिख होगा और कभी मजलूम हिंदू। आम जनता को असहिष्णु मानने की धारणा ही सरकार की असफलता का प्रतीक है। भारत सरकार 60 साल से धर्मनिरपेक्षता को संविधान की अहम विशेषता मानती रही है। लेकिन इतने दिनों बाद भी सरकार को इतना विश्वास नहीं है कि जनता इस फैसले को न्यायिक प्रक्रिया की एक कडी़ मानकर स्वीकार करेगी और असहमत होने की स्थिति में उच्चतम न्यायालय से अपील करेगी। दरअसल आम जनता को धर्मनिरपेक्ष बनाने की ईमानदार कोशिश सरकार ने कभी नहीं की। हमारे यहां शिक्षा का ढांचाए प्रशासन और पुलिस की कार्यशैली ऐसी रही है कि उनसे सांप्रदायिकता को खाद-पानी ही मिलता रहा है।
उत्तर प्रदेश में जनता को असहिष्णु मानने जैसी धारणा के आधार पर काम करना क्या संकेत देती हैघ् ऐसे आसार बन रहे हैं मानो जनांदोलनों के दमन के दौर में आम जनता के लिए बचा असहमति का रत्ती भर स्पेस भी समाप्त करने की कोशिश की जा रही है। पिछले एक साल में कई राजनीतिक गिरफ्तारियां हुई हैं। माफियाओं की गिरफ्तारी के मामले में भी पक्षपात किया जा रहा है। गंगा एक्सप्रेस वे, यमुना एक्सप्रेस वे जैसी योजनाओं के कारण धारा 144 का लागू होना आम बात हो गयी है। आसार तो यह भी जताये जा रहे हैं कि पिछले तीन सालों में अभिशासन के सभी मोर्चों पर असफल रहीं मायावती अयोध्या के फैसले को ध्रूवीकरण के नुस्खे के रूप में प्रयोग करना चाह रही है। हालांकि इसकी सच्चाई आने वाला समय तय करेगा।
संभवत: आज अयोध्या के कानूनी कुचक्रका अंत हो जाए। साथ ही उत्तर प्रदेश में पखवाड़े भर से लगा आंतरिक आपातकाल भी खत्म हो और राजनाथ और उस जैसे कई चाय, पान, सब्जियों, खोमचों और ठेले वालों की भट्टियों से धुआं उठे, उनकी दुकानें फिर से गुलजार हों और उनके बुझ चुके चेहरों पर फिर रौनक लौटे। इस फैसले के साथ ही मायावती सरकार द्वारा की जा रही है युद्ध की तैयारियों को भी विराम लगे। कुछ होगा! क्या हो सकता है? कुछ होगा नहीं!! जैसी अड़ीबाज अटकलबजियां भी बंद हों और लोगों के भीतर के घर कर गयी अनिश्चितता का तनाव भी खत्म हो। जनता अपनी सहिष्णुता का परिचय एक बार फिर दे!
फिलवक्त राजनाथ और उसके जैसे 100 से अधिक दुकानदारों की आजीविका आयोध्या मामले के फैसले के बाद होने वाले दंगों के मद्देनजर छीन ली गयी है। मायावती सरकारए, केंद्र सरकार और ब्यूरोक्रेसी को ऐसा लग रहा है कि बाबरी मस्जिद की मिल्कियत के फैसले के बाद देश में विशेषकर उत्तर प्रदेश में दंगे भड़क सकते हैं। इसके कारण उत्तर प्रदेश के 44 जिलों को संवेदनशील घोषित कर दिया गया है। प्रदेश के अधिकाश हिस्सों को पुलिस, पीएसी और अद्र्धसैनिक बलों से पाट दिया गया है। बड़े शहरों और जिला मुख्यालयों को छोडि़ए पुलिस के रूटमार्च तहसीलों और कस्बों तक हुए हैं। 'दंगो से हम सुरक्षित हैं'- यह बोध सरकार ने गांवों के स्तर तक पहुंचा दिया है। अखबारों में इन खबरों की कवरेज यों है मानो युद्ध की तैयारियां चल रही हैं। राजनाथ जैसे दुकानदार इस कवायद में ऐसे हल्के निशाने हैं, जिन्हें साध कर जनता को आसानी से डराया जा सकता है। इसलिए सरकार ने पहले इन्हें ही हटाया है। बाद के कदमों में प्रदेश में हर तरह के प्रदर्शनों, रैलियों और धरनों पर रोक लगा दी गयी है। प्रदेश में ऐसे हालात निर्मित कर दिये गये हैं मानो आपातकाल लगा हो।
अयोध्या (बाबरी विध्वंस) ने हमें मुंबई विस्फोट जैसे गहरे घाव दिये हैं। आंतकी हमलों और दहशत का अंतहीन सिलसिला अब भी जारी है। इसकी आड़ में आर्थिक नीतियों की कसी गयी चूलों में फंसा आम आदमी लगातार कराह रहा है। लेकिन पिछले 15 दिनों में मायावती और उनकी पुलिस ने एहतियातन जैसी तैयारियां की हैं, उन्होंने खौफ की नयी-नयी कहानियां गढ़ी हैं। लोग किसी आसन्न खतरे के कारण डरे हुए हैं। इन तैयारियों की कवायद में ही केंद्र सरकार ने भी कड़ी जोड़ दी है। प्रधानमंत्री ने देश के नाम अपील की है, अयोध्या के फैसले के बाद सभी लोगों को धैर्य और शांति कायम रखना जरूरी होगा। सभी लोगों में धैर्य और शांति बनी रहे, इसलिए ही देश भर में हाई एलर्ट जारी कर दिया गया है। 10 मिनट की नोटिस पर पहुंच जाने के लिए सुरक्षाबल तैयार किये गये हैं। अब हमें सोचना होगा कि क्या खतरा वाकई इतना बड़ा हैए जैसी की तैयारियां की जा रही हैं या मायावती सरकार अथवा केंद्र सरकार भय दिखाकर किन्हीं और उद्देश्यों को पूरा करना चाह रही है।
यह पूरी तैयारी इस पूर्वधारणा पर आधारित है कि आम जनता सहिष्णु नहीं है और अयोध्या मामले में आने वाला फैसला जिस भी पक्ष के विरोध में जाएगा, वह विरोध में दंगे भड़का सकता है। हालांकि यह पूर्वधारणा भी जनता के बारे में गलत समझ का ही द्योतक है। यह वास्तविकता है कि भारतीय समाज में धर्म एक प्रतिनिधि चेतना है। लेकिन मौजूदा अर्थ प्रणाली ने इस मुल्क में संपन्नता और विपन्नता के कई स्तर भी पैदा किये हैं। उन स्तरों की भौतिक स्थितियां ऐसी नहीं कि किसी स्वत:स्फूर्त दंगे का हिस्सा बनें या दंगे को नेतृत्व दें। यदि भारत में दंगों का इतिहास देखें तो आम आदमी दंगों के शिकार के रूप में ही दिखेगा। वह कभी मुसलमान होगाए कभी सिख होगा और कभी मजलूम हिंदू। आम जनता को असहिष्णु मानने की धारणा ही सरकार की असफलता का प्रतीक है। भारत सरकार 60 साल से धर्मनिरपेक्षता को संविधान की अहम विशेषता मानती रही है। लेकिन इतने दिनों बाद भी सरकार को इतना विश्वास नहीं है कि जनता इस फैसले को न्यायिक प्रक्रिया की एक कडी़ मानकर स्वीकार करेगी और असहमत होने की स्थिति में उच्चतम न्यायालय से अपील करेगी। दरअसल आम जनता को धर्मनिरपेक्ष बनाने की ईमानदार कोशिश सरकार ने कभी नहीं की। हमारे यहां शिक्षा का ढांचाए प्रशासन और पुलिस की कार्यशैली ऐसी रही है कि उनसे सांप्रदायिकता को खाद-पानी ही मिलता रहा है।
उत्तर प्रदेश में जनता को असहिष्णु मानने जैसी धारणा के आधार पर काम करना क्या संकेत देती हैघ् ऐसे आसार बन रहे हैं मानो जनांदोलनों के दमन के दौर में आम जनता के लिए बचा असहमति का रत्ती भर स्पेस भी समाप्त करने की कोशिश की जा रही है। पिछले एक साल में कई राजनीतिक गिरफ्तारियां हुई हैं। माफियाओं की गिरफ्तारी के मामले में भी पक्षपात किया जा रहा है। गंगा एक्सप्रेस वे, यमुना एक्सप्रेस वे जैसी योजनाओं के कारण धारा 144 का लागू होना आम बात हो गयी है। आसार तो यह भी जताये जा रहे हैं कि पिछले तीन सालों में अभिशासन के सभी मोर्चों पर असफल रहीं मायावती अयोध्या के फैसले को ध्रूवीकरण के नुस्खे के रूप में प्रयोग करना चाह रही है। हालांकि इसकी सच्चाई आने वाला समय तय करेगा।
संभवत: आज अयोध्या के कानूनी कुचक्रका अंत हो जाए। साथ ही उत्तर प्रदेश में पखवाड़े भर से लगा आंतरिक आपातकाल भी खत्म हो और राजनाथ और उस जैसे कई चाय, पान, सब्जियों, खोमचों और ठेले वालों की भट्टियों से धुआं उठे, उनकी दुकानें फिर से गुलजार हों और उनके बुझ चुके चेहरों पर फिर रौनक लौटे। इस फैसले के साथ ही मायावती सरकार द्वारा की जा रही है युद्ध की तैयारियों को भी विराम लगे। कुछ होगा! क्या हो सकता है? कुछ होगा नहीं!! जैसी अड़ीबाज अटकलबजियां भी बंद हों और लोगों के भीतर के घर कर गयी अनिश्चितता का तनाव भी खत्म हो। जनता अपनी सहिष्णुता का परिचय एक बार फिर दे!