Wednesday, 5 December 2018

साइंस का चाऊमीनीकरण है शंकर का 2.0

2.0, रोबोट को सिक्‍वेल है.
रजनीकांत परदे पर हों, और वो भी एक या दो नहीं, अनगिनत तो फिर कहानी और अभिनय की जरूरत नहीं रह जाती, हालांकि शंकर ने विषय अच्छा चुना है. हॉलीवुड का प्रिय विषय -टेक्नॉलोजी VS नेचर, और मेक इन इंडिया के रैपर में पैक कर दिया है. चूंकी रैपर हिंदुस्तानी है तो साइंस भी उतना ही है जितना हिंदुस्तानियों को हजम हो सके. जैसे चाऊमीन या पास्ता को बगैर मसालों के हम निगल नहीं पाते वैसे साइंस भी बगैर सुपरस्टि‍‍शंस हमारे पल्ले नहीं पड़ता. शंकर ने हमारी समझदारी का खास खयाल रखा है.
वैसे जब ट्रंप साहब को नहीं लगता कि क्‍लाइमेट चेंज हो रहा है और मोदीजी भी कहते हैं कि ठंड नहीं बढ़ रही, हमारी उम्र बढ़ रही है तो ऐसे समय पक्षी प्रेम पर फिल्म बनाना आउट ऑफ बॉक्स है. आउट ऑफ बॉक्स सोचने वाले ही देश चला रहे हैं, जो बॉक्स के भीतर सोचते हैं वो किसानों के लिए पर्चे लिख रहे हैं.
शंकर ने उन आउट ऑफ बॉक्स सोचने वालों का भी फिल्म में खास खयाल रखा है और मोबाइल रेडिएशन का ऐसा सॉल्यूशन सुझाया है कि रोबोट 2.0, रोबोट से पहले आ गई होती तो 2G स्कैम नहीं होता. मनमोहन सिंह तीसरी बार प्रधानमंत्री बनते. शंकर का सॉल्यूशन साइंस, पॉलिटिक्स और इकॉनोमिक्स का हलवाकरण हैं. ये हलवा सूजी का है या गाजर का, ये आपकी च्वाइस पर निर्भर करता है.
तकनीकी और प्रकृति के युद्ध में शंकर क्लॉमेक्‍स पर आकर उलझ भी गए हैं. उनकी उलझन भी वही है, जो इन दिनों मीडिया की है, सत्य चुने या सत्ता? दाएं-बाएं करने के बाद शंकर बिलकुल प्रेक्टिकल हो जाते हैं और सत्ता चुनते हैं. और शत्रु का खात्मा भी उसी अंदाज में करते हैं, जो हमारे महाकाव्य हमें सिखाते आए हैं. पाप का अंत विशुद्ध महाकाव्ययी शैली में. वैसे भी तकनीकी और प्रकृति के युद्ध में हॉलीवुड का नायक द्वंद्व में उलझता है. भारतीय मन तो हमेशा से स्पष्ट रहा है. स्वच्छता का पक्षधर.
हालांकि शंकर की तारीफ करनी होगी कि वो नायक और खलनायक के द्वंद्व में भी नहीं उलझे हैं. उनका नायक वो है जो सॉल्‍यूशन दे सके, सिद्धांत, सच्‍चाई, प्रेम के पचड़े में पड़ा आदमी प्रॉब्लम है. जिस फ्रिक्वेंसी पर आप व्हाट्सअप फैक्ट्री से आया ज्ञान दिमाग में अपलोड करते हैं, उसी फ्रि‍‍क्वेंसी पर ये फिल्म गटक जाइए, मजा आएगा.
रजनीकांत तो परदे पर रजनीकांत को ही जी रहे होते हैं तो उन पर क्‍‍या बात करना. बात तब की जाएगी जब कोई दूसरी अभिनेता परदे पर रजनीकांत को जी रहा होगा. अक्षय कुमार बूढ़े पक्षी विज्ञानी की भूमिका में पर्याप्त आक्रोशित हैं. फिल्म के जिस हिस्से में थोड़ा सुकून है, वो अक्षय के पास है. जिस पैकेट में अक्षय कुमार हों उसके साथ कोई ना कोई संदेश फ्री मिलता है, ये परंपरा 2.0 में भी बरकरार है.
बाकी फिल्म भरपूर मनोरंजन करती है. खत्म होने के बाद ठग्स ऑफ हिंदुस्तान जैसी फीलिंग नहीं आती.