जब वो बोलता है तो गर्दन की नसें नीली नहीं पड़ती. नथूने फड़कते नहीं. आंखों में दर्प नहीं होता. आवाज तुर्श नहीं होती. मैं उसे 10 साल से देख रहा हूं, वो ऐसा ही है. वाकई वो हमारे उस चौखटे में बिलकुल सेट नहीं बैठता, जिसे हम आज का नेता कहते हैं.
बात करते-करते फिलोसॉफिकल हो जाता है. उसके पास वो वनलाइनर्स नहीं होते, जिससे टीवी की ब्रेकिंग न्यूज़ बनती है. वो जुमले नहीं होते, जिस पर घंटे भर बहस कराई जा सके या 5 कॉलम का आर्टिकल लिखा जा सके. लुभावाने वादों के बजाय विज़न की बात करता है. जबकि हमारे पल्ले पड़ता है फैसला ऑन द स्पॉट वाला दर्शन. उसे देखकर और उसकी बातें सुनकर नहीं लगता कि किसी रात 8 बजे टीवी पर आकर वो बोलेगा कि कल से सारा देश लाइन में खड़ा हो जाए. ऐसा करने के लिए अव्वल दर्जे की इनसैनिटी चाहिए, जो फिलहाल उसमें नहीं है.
वो हिंदुस्तान को वैसे ही समझने की कोशिश करता है, जैसे महात्मा गांधी या उसके परनाना या उस दौर के कई और नेताओं ने किया था. फिर भी उसे पप्पू कहा जाता है. ऐसा क्यों है? क्योंकि वो प्रैक्टिकल नहीं है. प्रैक्टिकल होने का मतलब क्या होता है- कनिंग होना, सौदेबाजी में माहिर होना, धूर्त होना आदि-आदि. आप अपने दांये-बायें भी देख लीजिए जो प्रैक्टिकल नहीं है, उसे सबसे ज्यादा लात पड़ती है. आदर्शवाद इस दौर का उसूल नहीं है, वो आदर्शवादी है. इसलिए धूर्तता भरे इस दौर में वो फिट नहीं हो पाता. महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू आज होते तो उन्हें भी इम्प्रैक्टिकल मान लिया गया होता.
हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में इतने फ्रस्ट्रेटेड हैं कि सबक सिखाने वाला हर आदमी हमें हीरो लगता है, फिर चाहे वो सिनेमा के पर्दे पर विलेन को सबक सिखा रहा एक्टर हो या न्यूज चैनल पर पाकिस्तान को सबक सिखा रहा एंकर. यही वजह है कि मोदी उनके महानायक है क्योंकि वो कांग्रेस को सबक सिखाने की बात करते हैं, कांग्रेसमुक्त भारत की बात करते हैं. जबकि वो कहता है कि उसे बीजेपीमुक्त भारत नहीं चाहिए. वो विनम्र होकर बात करता है. पुराने मुख्यमंत्रियों को धन्यवाद देता है. जो अपनी हर सांस में सिर्फ उस पर हमले करता है, उसके बारे में भी कहता है कि मैंने उनसे सीखा कि मुझे क्या नहीं करना चाहिए.
ये सारे गुण या अवगुण ऐसे हैं जो उसे मौजूदा दौर के उन तमाम नेताओं से अलग करते हैं, जो गर्दन की नसें नीली करने और नथूने फड़काने को ही पराक्रम मानते हैं.
उसका नेचुरल उसे भीड़ से अलग कर देता है, फिर पूरी भीड़ उसे अननेचुरल साबित करने में लग जाती है.

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