(ये आलेख अप्रैल 2016 में अमर उजाला के लिए लिखा था. फिलहाल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नामों की सियासत के चैंपियन हो गए हैं और अपने दो साल के कार्यकाल में मुगलसराय और इलाहाबाद जैसे शहरों का नाम बदल चुके हैं. वैसे जावेद अख्तर ठीक ही कहते है कि पुराने बसे या किसी के बसाए शहरों का नाम बदलने के बजाय आप अपना शहर बनाइए और उनका मनचाहा नाम रख लीजिए. फिलहाल ये किसी भी पार्टी और नेता के बस की बात तो नहीं दिखती. ये आलेख तब लिखा गया था, जब हरियाणा की खट्टर सरकार ने गुड़गांव का नाम बदलकर गुरुग्राम रखा था. नामों की सियासत पर लगभग ढाई साल पुराना ये आलेख पढ़िए और प्रतिक्रिया दीजिए.)
"गुरुग्राम बस झांकी है, इंद्रप्रस्थ अभी बाकी है.प्राणप्रस्थ, शोणप्रस्थ, तिलप्रस्थ और वाक्प्रस्थ भी क्रम में आएंगे.'' फेसबुक पर ये टिप्पणी शशिरंजन मिश्रा ने #अथखट्टरमहिमा हैशटैग पर की.
जाट हिंसा की आग से हरियाणा को बचाने से नाकाम रही और आलोचनाओं से घिरी मनोहर लाल खट्टर सरकार ने औद्योगिक शहर गुड़गांव का नाम बदलकर 'गुरुग्राम' कर दिया.जिन्हें शेक्सपियर के फलसफे 'नाम में क्या में रखा है' में यकीन होगा, संभवतः उन्हें न गुड़गांव से तकलीफ रही होगी और न गुरुग्राम से होगी.
कई अलहदा राय के लोग भी हैं.मसलन ब्रिटेन के मशहूर अखबार इंडिपेंडेंट ने फरवरी में फैसला किया कि वो बांबे लिखेगा, मुंबई नहीं.समाचार पत्र के भारतीय मूल के संपादक अमोल रंजन ने बीबीसी से बातचीत में कहा, ये फैसला बांबे को मुंबई करने के पीछे छिपी हिंदु राष्ट्रवादी मंशा के विरोध के बतौर किया गया.उन्होंने कहा कि हिंदू राष्ट्रवादी जिस प्रकार से किसी चीज को कहलवाना चाहते हैं, उसे उसी प्रकार कहते हैं तो आप उन्हीं के काम को आगे बढ़ा रहे होते हैं.
हरियाणा सरकार का कहना है कि गुड़गांव द्रोणाचार्य की भूमि है और महाभारत में ये भूमि शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र रही है.उसी इतिहास को ध्यान रखकर गुड़गांव का नाम गुरुग्राम करने का फैसला किया गया है.हालांकि उद्योग जगत संभवतः हरियाणा सरकार के राय से इत्तफाक नहीं रखता.सोशल मीडिया भी खट्टर सरकार के फैसले की चुटकी ही ले रहा है।
नामों के जरिए सियासी एजेंडों को आगे बढ़ाने की कवायद नई नहीं
टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में कई प्रोफेशनल्स ने माना है कि हरियाणा सरकार के फैसले से 'ब्रांड 'गुड़गांव'' की छवि पर बुरा प्रभाव पड़ेगा.जेनपेक्ट इंडिया के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट मोहित ठुकराल ने कहा, नाम बदलने से कोई फायदा नहीं होगा.सरकार को आधारभूत ढांचे के विकास पर ध्यान देना चाहिए.
वैसे नामों के जरिए सियासी एजेंडों को आगे बढ़ाने की कवायद नई नहीं है.1995 में महाराष्ट्र की शिवसेना-भाजपा सरकार ने बंबई का नाम बदलकर मुंबई करने का फैसला किया.सरकार का तर्क था शहर का मराठी नाम मुंबई ही है, जबकि बंबई या बांबे औपनिवेशिक सत्ता द्वारा दिया गया नाम है.महाराष्ट्र सरकार के फैसले का असर ये हुआ था कि उसी साल आई मणिरत्नम की फिल्म 'बांबे' को नाम के कारण ही विरोध का सामना करना पड़ा था.
आजादी के बाद अंग्रेजों के दौर के कई नामों को बदला गया.विभिन्न सरकारों द्वारा लिए गए कई फैसले सराहे गए तो कई पर विवाद हुआ.कुछ आज तक कार्यान्वित नहीं हो पाए.सरकार ने कई नाम जनता के नाम पर रखे और कई नाम को राजनीतिक दलों ने जनता की राय बताकर थोप दिया।
जनता की मांग पर बदला गया उत्तराखंड का नाम
1956 के राज्य पुनर्गठन कानून के बाद अंग्रेजों के दिए कई नाम खत्म कर दिए गए और नए राज्यों के गठन के साथ ही नया नाम भी दिया गया.मसलन त्रावणकोर-कोचीन को केरला नाम दिया गया, मद्रास स्टेट को तमिलनाडु (1969) और मैसूर स्टेट को कर्नाटक (1973) नाम दिया गया.राज्यों को गठन भाषा के आधार पर किया गया था, इसलिए नाम उसी भाषा का प्रतिनिधित्व करता हुआ रखा गया.
हालांकि बांबे को मुंबई करने के बाद स्थानीय भाषाओं में नाम बदलने का सिलसिला चल निकला.1996 में तमिलनाडु सरकार ने मद्रास का नाम बदलकर चेन्नई कर दिया.2001 में कलकत्ता (Calcutta) का नाम कोलकाता किया गया.कलकत्ता को औपनिवेशिक मानते हुए बांग्ला उच्चारण कोलकाता को तरजीह दी गई.
ये बदलाव स्थानीय भाषाओं के उच्चारण के अनुरूप किए गए, हालांकि इसके राजनीतिक मकसद भी थे.कई बार शहरों और राज्यों नामों से औपनिवेशिक प्रभावों को खत्म करने के लिए और उन्हें स्थानीय भाषा के उच्चारणों के अनुरूप करने के लिए भी बदलाव किए गए, मसलन पांडिचेरी का नाम पुडुचेरी किया गया.2011 में उड़ीसा (Orissa) को ओडिशा (Odisha) किया गया.2014 में कर्नाटक के कई शहरों के नामों की अंग्रेजी वर्तनी में बदलाव किया गया.2000 में उत्तर प्रदेश के पहाड़ी इलाकों को अलग कर एक राज्य उत्तरांचल बनाया गया.जनता की मांग के बाद उसे उत्तराखंड किया गया.
नाम की सियासत में भाजपा अव्वल
नामों की सियासत वर्तनी सुधार और औपनिवेशिक प्रभावों के खात्मे तक ही सीमित नहीं रही.कुछ राजनीतिक दलों ने अपनी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए भी नामों में बदलाव किया.
मायावती ने उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री रहते हुए प्रदेश के कई जिलों को नाम बदलकर दलित मसिहाओं के नाम पर रख दिया.नोएडा का नाम गौतमबुद्घ नगर रखा गया.अपने पिछले कार्यकाल में उन्होंने प्रदेश के आठ जिलों का नाम दलित सुधारकों और नेताओं के नाम पर रखे.हालांकि 2012 में सपा सरकार ने उन सभी फैसलों को पलट दिया.
नामों की सियासत में भाजपा अव्वल नंबर पर आती है.पार्टी की योजना अहमदाबाद को कर्णावती, भोपाल को भोजपाल, इलाहाबाद को प्रयाग और लखनऊ को लक्ष्मणपुर करने की रही है, (इलाहाबाद का नाम प्रयागराज किया जा चुका है.) पार्टी का मानना है ये सभी नाम मुगलों की देन है, और इन्हें हिंदु राष्ट्र के अनुरूप होना चाहिए.
"गुरुग्राम बस झांकी है, इंद्रप्रस्थ अभी बाकी है.प्राणप्रस्थ, शोणप्रस्थ, तिलप्रस्थ और वाक्प्रस्थ भी क्रम में आएंगे.'' फेसबुक पर ये टिप्पणी शशिरंजन मिश्रा ने #अथखट्टरमहिमा हैशटैग पर की.
जाट हिंसा की आग से हरियाणा को बचाने से नाकाम रही और आलोचनाओं से घिरी मनोहर लाल खट्टर सरकार ने औद्योगिक शहर गुड़गांव का नाम बदलकर 'गुरुग्राम' कर दिया.जिन्हें शेक्सपियर के फलसफे 'नाम में क्या में रखा है' में यकीन होगा, संभवतः उन्हें न गुड़गांव से तकलीफ रही होगी और न गुरुग्राम से होगी.
कई अलहदा राय के लोग भी हैं.मसलन ब्रिटेन के मशहूर अखबार इंडिपेंडेंट ने फरवरी में फैसला किया कि वो बांबे लिखेगा, मुंबई नहीं.समाचार पत्र के भारतीय मूल के संपादक अमोल रंजन ने बीबीसी से बातचीत में कहा, ये फैसला बांबे को मुंबई करने के पीछे छिपी हिंदु राष्ट्रवादी मंशा के विरोध के बतौर किया गया.उन्होंने कहा कि हिंदू राष्ट्रवादी जिस प्रकार से किसी चीज को कहलवाना चाहते हैं, उसे उसी प्रकार कहते हैं तो आप उन्हीं के काम को आगे बढ़ा रहे होते हैं.
हरियाणा सरकार का कहना है कि गुड़गांव द्रोणाचार्य की भूमि है और महाभारत में ये भूमि शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र रही है.उसी इतिहास को ध्यान रखकर गुड़गांव का नाम गुरुग्राम करने का फैसला किया गया है.हालांकि उद्योग जगत संभवतः हरियाणा सरकार के राय से इत्तफाक नहीं रखता.सोशल मीडिया भी खट्टर सरकार के फैसले की चुटकी ही ले रहा है।
नामों के जरिए सियासी एजेंडों को आगे बढ़ाने की कवायद नई नहीं
टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में कई प्रोफेशनल्स ने माना है कि हरियाणा सरकार के फैसले से 'ब्रांड 'गुड़गांव'' की छवि पर बुरा प्रभाव पड़ेगा.जेनपेक्ट इंडिया के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट मोहित ठुकराल ने कहा, नाम बदलने से कोई फायदा नहीं होगा.सरकार को आधारभूत ढांचे के विकास पर ध्यान देना चाहिए.
वैसे नामों के जरिए सियासी एजेंडों को आगे बढ़ाने की कवायद नई नहीं है.1995 में महाराष्ट्र की शिवसेना-भाजपा सरकार ने बंबई का नाम बदलकर मुंबई करने का फैसला किया.सरकार का तर्क था शहर का मराठी नाम मुंबई ही है, जबकि बंबई या बांबे औपनिवेशिक सत्ता द्वारा दिया गया नाम है.महाराष्ट्र सरकार के फैसले का असर ये हुआ था कि उसी साल आई मणिरत्नम की फिल्म 'बांबे' को नाम के कारण ही विरोध का सामना करना पड़ा था.
आजादी के बाद अंग्रेजों के दौर के कई नामों को बदला गया.विभिन्न सरकारों द्वारा लिए गए कई फैसले सराहे गए तो कई पर विवाद हुआ.कुछ आज तक कार्यान्वित नहीं हो पाए.सरकार ने कई नाम जनता के नाम पर रखे और कई नाम को राजनीतिक दलों ने जनता की राय बताकर थोप दिया।
जनता की मांग पर बदला गया उत्तराखंड का नाम
1956 के राज्य पुनर्गठन कानून के बाद अंग्रेजों के दिए कई नाम खत्म कर दिए गए और नए राज्यों के गठन के साथ ही नया नाम भी दिया गया.मसलन त्रावणकोर-कोचीन को केरला नाम दिया गया, मद्रास स्टेट को तमिलनाडु (1969) और मैसूर स्टेट को कर्नाटक (1973) नाम दिया गया.राज्यों को गठन भाषा के आधार पर किया गया था, इसलिए नाम उसी भाषा का प्रतिनिधित्व करता हुआ रखा गया.
हालांकि बांबे को मुंबई करने के बाद स्थानीय भाषाओं में नाम बदलने का सिलसिला चल निकला.1996 में तमिलनाडु सरकार ने मद्रास का नाम बदलकर चेन्नई कर दिया.2001 में कलकत्ता (Calcutta) का नाम कोलकाता किया गया.कलकत्ता को औपनिवेशिक मानते हुए बांग्ला उच्चारण कोलकाता को तरजीह दी गई.
ये बदलाव स्थानीय भाषाओं के उच्चारण के अनुरूप किए गए, हालांकि इसके राजनीतिक मकसद भी थे.कई बार शहरों और राज्यों नामों से औपनिवेशिक प्रभावों को खत्म करने के लिए और उन्हें स्थानीय भाषा के उच्चारणों के अनुरूप करने के लिए भी बदलाव किए गए, मसलन पांडिचेरी का नाम पुडुचेरी किया गया.2011 में उड़ीसा (Orissa) को ओडिशा (Odisha) किया गया.2014 में कर्नाटक के कई शहरों के नामों की अंग्रेजी वर्तनी में बदलाव किया गया.2000 में उत्तर प्रदेश के पहाड़ी इलाकों को अलग कर एक राज्य उत्तरांचल बनाया गया.जनता की मांग के बाद उसे उत्तराखंड किया गया.
नाम की सियासत में भाजपा अव्वल
नामों की सियासत वर्तनी सुधार और औपनिवेशिक प्रभावों के खात्मे तक ही सीमित नहीं रही.कुछ राजनीतिक दलों ने अपनी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए भी नामों में बदलाव किया.
मायावती ने उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री रहते हुए प्रदेश के कई जिलों को नाम बदलकर दलित मसिहाओं के नाम पर रख दिया.नोएडा का नाम गौतमबुद्घ नगर रखा गया.अपने पिछले कार्यकाल में उन्होंने प्रदेश के आठ जिलों का नाम दलित सुधारकों और नेताओं के नाम पर रखे.हालांकि 2012 में सपा सरकार ने उन सभी फैसलों को पलट दिया.
नामों की सियासत में भाजपा अव्वल नंबर पर आती है.पार्टी की योजना अहमदाबाद को कर्णावती, भोपाल को भोजपाल, इलाहाबाद को प्रयाग और लखनऊ को लक्ष्मणपुर करने की रही है, (इलाहाबाद का नाम प्रयागराज किया जा चुका है.) पार्टी का मानना है ये सभी नाम मुगलों की देन है, और इन्हें हिंदु राष्ट्र के अनुरूप होना चाहिए.


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